रविवार, अगस्त 23, 2009

जाने कितने साल हो गए खुल कर हँसे हुए

अब तो सुबह शाम रहते हैं
जबड़े कसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये

हर अच्छे मजाक की कोशिश
खाली जाती है
हंसी नाटकों में पीछे से
डाली जाती है
कांटे कुछ दिल से दिमाग तक
गहरे धंसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये


खा डाले खुदगर्जी ने
गहरे याराने भी
'आप-आप' कहते हैं अब तो
दोस्त पुराने भी
मेहमानों से लगते रिश्ते
घर में बसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये