मंगलवार, दिसंबर 14, 2010

गीत - सांस्कृतिक आयोजन के अवसर


गीत
सांस्कृतिक आयोजन के अवसर आये

वीरेन्द्र जैन

नाच उठे चूहे पेटों में
भूख गीत गाये
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन के अवसर आये

वस्त्रों के अभाव में
नारी अंग प्रदर्शन हो
हर निर्धन बस्ती आयोजित
ऐसे फैशन शो
वीतराग हो गये आदमी बिन दीक्षा पाये
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन के अवसर आये

हैं धृतराष्ट्र शिखण्डी जैसे
नायक नाटक के
दर्शक की किस्मत में लिक्खे
हैं केवल धक्के
उठती गिरती रही यवनिका दायें से बायें
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन के अवसर आये

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

गुरुवार, अक्तूबर 07, 2010

गीत बिडम्बना


बिडम्बना
वीरेन्द्र जैन
जन्मभूमि आज़ाद हो गई, अगर अवध में राम की
फिर क्यों नौजवान के आगे खड़ी समस्या काम की
इनकी नहीं अवस्था बदली
बिल्कुल नहीं व्यवस्था बदली
भटक रहे हैं मारे मारे
फुरसत नहीं विराम की
जन्मभूमि आज़ाद हो गई, अगर अवध में राम की
फिर क्यों नौजवान के आगे खड़ी समस्या काम की

व्यापारी लूटे दिन दूना
अफसर लगा रहे हैं चूना
अपराधी नेता मिल खाते
अब भी रोज हराम की
जन्मभूमि आज़ाद हो गई, अगर अवध में राम की
फिर क्यों नौजवान के आगे खड़ी समस्या काम की

झूठे मन, झूठे आन्दोलन
इनसे सुविधा पाते शोषण
सुबह सुबह ये बातें करते
रहें डूबती शाम की
जन्मभूमि आज़ाद हो गई, अगर अवध में राम की
फिर क्यों नौजवान के आगे खड़ी समस्या काम की


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

मंगलवार, जुलाई 27, 2010

एक गज़लनुमा रचना - सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है


एक गजलनुमा रचना सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है
वीरेन्द्र जैन


आम अमरूद है ना इमली है
बाग में फूल है न तितली है

अब वहां आप हैं ना हलचल है
सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है

घूम फिर जिक्र आ ही जाता है
जब भी बातों में बात निकली है

हर किसी ने सम्हाल कर रक्खी
हर किसी की जुबान फिसली है

पीर से कोई बच नहीं पाया
उसने उगली है हमने निगली है

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

सोमवार, जुलाई 19, 2010

गजलनुमा रचना -सरे मैदान दुश्मन से लड़ा हूँ

एक गज़लनुमा रचना
वीरेन्द्र जैन

सरे मैदान अपनों से लड़ा हूं
महाभारत के अर्जुन से बड़ा हूं

मैं जिन हालात में जिन्दा खड़ा हूं
निगाहे मौत में चिकना घड़ा हूं

कभी सिर आंख पर जिनने बिठाया
उन्हें लगता है उनके सिर पड़ा हूं

मैं खूं के घूंट पी कर रह रहा हूं
नदी के पास भी प्यासा पड़ा हूं

न पूछो हाल ताजा हैसियत का
उमड़ती भीड़ का इक आंकड़ा हूं

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

गुरुवार, जुलाई 08, 2010

गीत मेरी आँख त्तुम्हारे सपने


गीत
मेरी आँख तुम्हारे सपने
वीरेन्द्र जैन

मेरी आँख तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

ये अर्न्तमन की आदत हैं
ये मुझ निर्धन की दौलत हैं
स्मृतियों के कैनवास पर
मैंने रोज उभारे सपने
मेरी आंख, तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

ऐसे गये लगाये शीशे
फूल बने टूटी चूड़ी से
रोज कल्पना के आंचल में
जड़ते कई सितारे सपने
मेरी आंख, तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

पहले भीना, फिर भारीपन
जाने कितने रंग रंगा मन
बिखर गये हर बार,मगर
मैंने हर बार संवारे सपने
मेरी आंख, तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

गुरुवार, जुलाई 01, 2010

एकगज़लानुमा रचना अगर बरसात में छत का टपकना बंद हो जाए


एक गज़लनुमा रचना

अगर बरसात में छत का टपकना बन्द हो जाये

अगर बरसात में छत का टपकना बन्द हो जाये

तो हर इक बूंद में आनन्द ही आनन्द हो जाये

तुम्हारे बाम पर आने का लम्हा गर मुकर्रर हो

हमीं क्या हर कोई फिर वक़्त का पाबन्द हो जाये

अगर अंतर करें ना एकलव्यों और अर्जुन में

हमारे देश का हर इक गुरू गोबिन्द हो जाये

कभी दोहा कभी मुक्तक कभी हों शेर गज़लों के

तुम्हारे पैरहन जैसा हमारा छंद हो जाये

सुबह की लालिमा को चाँदनी में घोल दे कोई

तो उसका रंग तेरे रंग के मानिन्द हो जाये

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023

मो. 9425674629

सोमवार, मई 31, 2010

गीत- आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है


गीत
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है
वीरेन्द्र जैन

जैसे भूले भटके कोई दोस्त पुराना घर आ जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है

फिर से पहुंच गयी है उम्र उसी मधुवन में
और कूकने लगी उसी स्वर में कोयलिया
फिर से चित्र बनाती हैं सारी स्मृतियां
कब तुमने मुस्काया, कब मुंह फेर हँस दिया
जैसे कोई सहेजा खत, बक्से में अकस्मात मिल जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है

फिर से उठी हिलोर अचानक पोर पोर में
फिर से कसकी मन की वो ही पीर पुरानी
फिर से वही कसमसाहट महसूसी मैंने
वक्त फिसलना,मुट्ठी सिर्फ बंधी रह जानी
जैसे बेमौसम, बेबादल सुबह सुबह बारिश हो जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

रविवार, मई 30, 2010

एक गज़ल नुमा रचना बस्ती के लोग खेलेते पत्थर उछाल कर्


एक गज़लनुमा रचना
बस्ती के लोग खेलते पत्थर उछाल कर
वीरेन्द्र जैन


लगते हैं आम जब भी दरख्तों में डाल पर
बस्ती के लोग खेलते पत्थर उछाल कर

जैसा सिखाओगे उसे वैसा ही करेगा
बच्चा डरा रहा हमें आँखें निकाल कर

चिड़ियाघरों में देखूं कहाँ यह सवाल है
हिरनी सी आँख मुग्ध है हिरनी की चाल पर

जिस जिस ने जो जो पूछा सो उत्तर उन्हें मिले
उठ कर चले गये हैं हमारे सवाल पर

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

शुक्रवार, मई 14, 2010

गीत- हमने बहुत बहुत सोचा था


हमने बहुत बहुत सोचा था
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हमने बहुत बहुत सोचा था
कुछ भी नहीं हुआ
हार गये हम सारा जीवन
निकला एक जुआ

धारा का ऐसा प्रवाह था
पकड़न फिसल गयी
चमत्कार की सब उम्मीदें
झूठी निकल गयीं
सीढी जिसे समझते थे हम
निकला एक कुँआ
हमने बहुत बहुत सोचा था
कुछ भी नहीं हुआ

वैसे वही किया जीवन भर
जो मन में ठाना
पुरूषारथ के आगे कोई
भाग्य नहीं माना
पर नारे पड़ गये अकेले
लगने लगे दुआ
हमने बहुत बहुत सोचा था
कुछ भी नहीं हुआ

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

शनिवार, अप्रैल 24, 2010

गीत - मेघों की श्याम पताकाएं

गीत
मेघों की श्याम पताकाएं
वीरेन्द्र जैन


सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं

सारा जल सोख सोख लेता
संग्रहकर्ताओं का नेता
वितरण की व्यर्थ व्यवस्थाएं
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं

व्यर्थ हुआ अब विरोध धीमा
मनमानी तोड़ गयी सीमा
गरजें ओ बिजलियां गिरायें
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं

कोई होंठ प्यासा न तरसे
मन चाहे खूब नीर बरसे
वर्षा में भीग कर नहाएं
सूरज को क्यों न दिखलाएं
मेघों की श्याम पताकाएं


वीरेन्द्र जैन 2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के निकट भोपाल [म.प्र.]
9425674629

बुधवार, अप्रैल 07, 2010

गीत- ठीक नहीं लगता

गीत
ठीक नहीं लगता
वीरेन्द्र जैन


पीसा सारी रात मगर बारीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता

जीवन की गाड़ी कुछ भारी भारी चलती है
ऐसे चलती है जैसे लाचारी चलती है
जो दिल में बैठा वो भी नजदीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता

ना 'हां' लिक्खा, ना 'ना' लिक्खा, मेरी अर्जी पर
सारा आगत रुका हुआ है , उनकी मर्जी पर
सुर में बजता जीवन का संगीत नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता

वीरेन्द्र जैन
2\1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

एक ग़ज़लनुमा रचना- हवाओं ने हवाओं को हवा दी

एक गज़ल नुमा रचना
हवाओं ने हवाओं को हवा दी


वीरेन्द्र जैन

बयारें थीं उन्हें आँधी बता दी
हवाओं ने हवाओं को हवा दी


गयी जड़ से न बीमारी तुम्हारी
दबाओं ने अभी बेशक दबा दी


हमें तब तब हुये फोड़े कि जब जब
फलो फूलो, बुजर्गों ने दुआ दी


जिसे विश्वास से पतवार सौंपी
उसी ने बीच में किश्ती डुबा दी


हमारे होश तब से फाख्ता हैं
कि जब से आपने चिलमन उठा दी


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

एक गज़लनुमा रचना---------------------------------- धार क्या खाक मोड़ता यारो


एक गज़लनुमा रचना
धार क्या खाक मोड़ता यारो!
वीरेन्द्र जैन
हाथ दरिया के जोड़ता यारो
धार क्या खाक मोड़ता यारो


फैंक दी आखिर मैंने चादर ही
पाँव कब तक सिकोड़ता यारो


मुझको कस्तूरी मिल गई बरना
रोज़ वन वन में दौड़ता यारो


दर असल वो तो मेरी आदत थी
मैं उसे कैसे छोड़ता यारो


मन वचन कर्म से दिगम्बर था
क्या नहाता निचोड़ता यारो


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629



बुधवार, मार्च 31, 2010

एक गज़लनुमा रचना-------------------------- मगर जो छोड़ा वो भी घर नहीं था

एक गज़लनुमा रचना
वीरेन्द्र जैन


जहाँ पहुँचा वहाँ छप्पर नहीं था
मगर जो छोड़ा वो भी घर नहीं था

मुसीबत आई तो, यारी भी छूटी
वो घर होकर भी, अपने घर नहीं था

किनारा हाथ में आता तो कैसे
मैं उत्सुक था मगर तत्पर नहीं था

मुझे तुम नाम लेकर के पुकारो
मैं जब था, तब भी तो अफसर नहीं था

कहा तो कान में उसने था लेकिन
हमारा पाँव धरती पर नहीं था

उसे उम्मीद क्यों थी नौकरी की
किसी का हाथ जो सर पर नहीं था

न वो आयी, न मुझको नींद आयी
ये बिस्तर था मुँआं, दफ्तर नहीं था

उसे तो छोड़ना ही छोड़ना था
वो नौकर था कुई शौहर नहीं था

जहाँ कातिल ही मुंसिफ हो गये हों
वहाँ इल्ज़ाम किस किस पर नहीं था

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

शनिवार, मार्च 13, 2010

गीत - सूरज चाँद पहाड़ नदी सबसे सम्बन्ध हुआ



सूरज चांद पहाड़ नदी सबसे सम्बन्ध हुआ

वीरेन्द्र जैन

जब तक घर था
मैं निर्भर था
अब निर्बन्ध हुआ
सूरज चांद पहाड़ नदी
सब से सम्बन्ध हुआ

सीमित था जब तक जीवित था
रिश्तों को ढोकर
फैल गया मैं कितना कितना
अपनों को खोकर
शीशी फूटी, इत्र फैल सर्वत्र सुगन्ध हुआ
सूरज चांद पहाड़ नदी सबसे सम्बन्ध हुआ

अब आया ये समझ,
हवा इतना इठलाती क्यों
अब मैंने जाना ये नदिया
कल कल गाती क्यों
तभी हो सका आनन्दित जिस रोज अनन्त हुआ
सूरज चांद पहाड़ नदी सबसे सम्बन्ध हुआ


वीरेन्द्र जैन
2/1शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

बुधवार, मार्च 03, 2010

कुछ अहसान साथ ले जाना

कुछ अहसान साथ ले जाना
वीरेन्द्र जैन


सबके कर्ज़ चुका मत देना
कुछ अहसान साथ ले जाना

कभी बुआ ने करी गुदगुदी
चाचाजी ने खूब हँसाया
दादाजी ने घोड़ा बन कर
कभी पीठ पर तुम्हें बिठाया
इस उधार पर चलती दुनियाँ
ऐसे दान साथ ले जाना
सबके कर्ज़ चुका मत देना
कुछ अहसान साथ ले जाना
बिजली छूने वाले थे जब
बड़े भाई ने जड़े तमाचे
दोस्त तुम्हारी शादी में जब
दिल की गहराई से नाचे
मुर्दा होकर मत मर जाना
थोड़ी जान साथ ले जाना
सब के कर्ज़ चुका मत देना
कुछ अहसान साथ ले जाना

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629