गीत
ठीक नहीं लगता
वीरेन्द्र जैन
पीसा सारी रात मगर बारीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
जीवन की गाड़ी कुछ भारी भारी चलती है
ऐसे चलती है जैसे लाचारी चलती है
जो दिल में बैठा वो भी नजदीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
ना 'हां' लिक्खा, ना 'ना' लिक्खा, मेरी अर्जी पर
सारा आगत रुका हुआ है , उनकी मर्जी पर
सुर में बजता जीवन का संगीत नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
वीरेन्द्र जैन
2\1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
बुधवार, अप्रैल 07, 2010
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वाह वाह ... बहुत सुन्दर एक अलग ढंग की कविता है ... पढके मज़ा आ गया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंwow !!!!!!!!
जवाब देंहटाएंgood
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/