मंगलवार, जुलाई 27, 2010

एक गज़लनुमा रचना - सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है


एक गजलनुमा रचना सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है
वीरेन्द्र जैन


आम अमरूद है ना इमली है
बाग में फूल है न तितली है

अब वहां आप हैं ना हलचल है
सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है

घूम फिर जिक्र आ ही जाता है
जब भी बातों में बात निकली है

हर किसी ने सम्हाल कर रक्खी
हर किसी की जुबान फिसली है

पीर से कोई बच नहीं पाया
उसने उगली है हमने निगली है

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

सोमवार, जुलाई 19, 2010

गजलनुमा रचना -सरे मैदान दुश्मन से लड़ा हूँ

एक गज़लनुमा रचना
वीरेन्द्र जैन

सरे मैदान अपनों से लड़ा हूं
महाभारत के अर्जुन से बड़ा हूं

मैं जिन हालात में जिन्दा खड़ा हूं
निगाहे मौत में चिकना घड़ा हूं

कभी सिर आंख पर जिनने बिठाया
उन्हें लगता है उनके सिर पड़ा हूं

मैं खूं के घूंट पी कर रह रहा हूं
नदी के पास भी प्यासा पड़ा हूं

न पूछो हाल ताजा हैसियत का
उमड़ती भीड़ का इक आंकड़ा हूं

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

गुरुवार, जुलाई 08, 2010

गीत मेरी आँख त्तुम्हारे सपने


गीत
मेरी आँख तुम्हारे सपने
वीरेन्द्र जैन

मेरी आँख तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

ये अर्न्तमन की आदत हैं
ये मुझ निर्धन की दौलत हैं
स्मृतियों के कैनवास पर
मैंने रोज उभारे सपने
मेरी आंख, तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

ऐसे गये लगाये शीशे
फूल बने टूटी चूड़ी से
रोज कल्पना के आंचल में
जड़ते कई सितारे सपने
मेरी आंख, तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

पहले भीना, फिर भारीपन
जाने कितने रंग रंगा मन
बिखर गये हर बार,मगर
मैंने हर बार संवारे सपने
मेरी आंख, तुम्हारे सपने
अबतक वही कुंवारे सपने

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

गुरुवार, जुलाई 01, 2010

एकगज़लानुमा रचना अगर बरसात में छत का टपकना बंद हो जाए


एक गज़लनुमा रचना

अगर बरसात में छत का टपकना बन्द हो जाये

अगर बरसात में छत का टपकना बन्द हो जाये

तो हर इक बूंद में आनन्द ही आनन्द हो जाये

तुम्हारे बाम पर आने का लम्हा गर मुकर्रर हो

हमीं क्या हर कोई फिर वक़्त का पाबन्द हो जाये

अगर अंतर करें ना एकलव्यों और अर्जुन में

हमारे देश का हर इक गुरू गोबिन्द हो जाये

कभी दोहा कभी मुक्तक कभी हों शेर गज़लों के

तुम्हारे पैरहन जैसा हमारा छंद हो जाये

सुबह की लालिमा को चाँदनी में घोल दे कोई

तो उसका रंग तेरे रंग के मानिन्द हो जाये

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023

मो. 9425674629