गुरुवार, जुलाई 01, 2010

एकगज़लानुमा रचना अगर बरसात में छत का टपकना बंद हो जाए


एक गज़लनुमा रचना

अगर बरसात में छत का टपकना बन्द हो जाये

अगर बरसात में छत का टपकना बन्द हो जाये

तो हर इक बूंद में आनन्द ही आनन्द हो जाये

तुम्हारे बाम पर आने का लम्हा गर मुकर्रर हो

हमीं क्या हर कोई फिर वक़्त का पाबन्द हो जाये

अगर अंतर करें ना एकलव्यों और अर्जुन में

हमारे देश का हर इक गुरू गोबिन्द हो जाये

कभी दोहा कभी मुक्तक कभी हों शेर गज़लों के

तुम्हारे पैरहन जैसा हमारा छंद हो जाये

सुबह की लालिमा को चाँदनी में घोल दे कोई

तो उसका रंग तेरे रंग के मानिन्द हो जाये

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023

मो. 9425674629

2 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे बाम पर आने का लम्हा गर मुकर्रर हो
    हमीं क्या हर कोई फिर वक़्त का पाबन्द हो जाये

    वाह...वा...एक दम अछूता शेर कहा है आपने...बेहतरीन...दाद कबूल करें...
    नीरज

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  2. अगर अंतर करें ना एकलव्यों और अर्जुन में

    हमारे देश का हर इक गुरू गोबिन्द हो जाये

    तुम्हारे बाम पर आने का लम्हा गर मुकर्रर हो
    हमीं क्या हर कोई फिर वक़्त का पाबन्द हो जाये
    वाह बहुत लाजवाब शेर हैं। आभार।

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