गीत
मेघों की श्याम पताकाएं
वीरेन्द्र जैन
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
सारा जल सोख सोख लेता
संग्रहकर्ताओं का नेता
वितरण की व्यर्थ व्यवस्थाएं
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
व्यर्थ हुआ अब विरोध धीमा
मनमानी तोड़ गयी सीमा
गरजें ओ बिजलियां गिरायें
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
कोई होंठ प्यासा न तरसे
मन चाहे खूब नीर बरसे
वर्षा में भीग कर नहाएं
सूरज को क्यों न दिखलाएं
मेघों की श्याम पताकाएं
वीरेन्द्र जैन 2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के निकट भोपाल [म.प्र.]
9425674629
शनिवार, अप्रैल 24, 2010
बुधवार, अप्रैल 07, 2010
गीत- ठीक नहीं लगता
गीत
ठीक नहीं लगता
वीरेन्द्र जैन
पीसा सारी रात मगर बारीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
जीवन की गाड़ी कुछ भारी भारी चलती है
ऐसे चलती है जैसे लाचारी चलती है
जो दिल में बैठा वो भी नजदीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
ना 'हां' लिक्खा, ना 'ना' लिक्खा, मेरी अर्जी पर
सारा आगत रुका हुआ है , उनकी मर्जी पर
सुर में बजता जीवन का संगीत नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
वीरेन्द्र जैन
2\1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
ठीक नहीं लगता
वीरेन्द्र जैन
पीसा सारी रात मगर बारीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
जीवन की गाड़ी कुछ भारी भारी चलती है
ऐसे चलती है जैसे लाचारी चलती है
जो दिल में बैठा वो भी नजदीक नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
ना 'हां' लिक्खा, ना 'ना' लिक्खा, मेरी अर्जी पर
सारा आगत रुका हुआ है , उनकी मर्जी पर
सुर में बजता जीवन का संगीत नहीं लगता
जाने कैसा कैसा लगता ठीक नहीं लगता
वीरेन्द्र जैन
2\1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010
एक ग़ज़लनुमा रचना- हवाओं ने हवाओं को हवा दी
एक गज़ल नुमा रचना
हवाओं ने हवाओं को हवा दी
वीरेन्द्र जैन
बयारें थीं उन्हें आँधी बता दी
हवाओं ने हवाओं को हवा दी
गयी जड़ से न बीमारी तुम्हारी
दबाओं ने अभी बेशक दबा दी
हमें तब तब हुये फोड़े कि जब जब
फलो फूलो, बुजर्गों ने दुआ दी
जिसे विश्वास से पतवार सौंपी
उसी ने बीच में किश्ती डुबा दी
हमारे होश तब से फाख्ता हैं
कि जब से आपने चिलमन उठा दी
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
हवाओं ने हवाओं को हवा दी
वीरेन्द्र जैन
बयारें थीं उन्हें आँधी बता दी
हवाओं ने हवाओं को हवा दी
गयी जड़ से न बीमारी तुम्हारी
दबाओं ने अभी बेशक दबा दी
हमें तब तब हुये फोड़े कि जब जब
फलो फूलो, बुजर्गों ने दुआ दी
जिसे विश्वास से पतवार सौंपी
उसी ने बीच में किश्ती डुबा दी
हमारे होश तब से फाख्ता हैं
कि जब से आपने चिलमन उठा दी
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
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कविता,
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साहित्य,
हिन्दी ग़ज़ल
गुरुवार, अप्रैल 01, 2010
एक गज़लनुमा रचना---------------------------------- धार क्या खाक मोड़ता यारो

एक गज़लनुमा रचना
धार क्या खाक मोड़ता यारो!
वीरेन्द्र जैन
हाथ दरिया के जोड़ता यारो
धार क्या खाक मोड़ता यारो
धार क्या खाक मोड़ता यारो!
वीरेन्द्र जैन
हाथ दरिया के जोड़ता यारो
धार क्या खाक मोड़ता यारो
फैंक दी आखिर मैंने चादर ही
पाँव कब तक सिकोड़ता यारो
मुझको कस्तूरी मिल गई बरना
रोज़ वन वन में दौड़ता यारो
दर असल वो तो मेरी आदत थी
मैं उसे कैसे छोड़ता यारो
मन वचन कर्म से दिगम्बर था
क्या नहाता निचोड़ता यारो
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
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