शुक्रवार, मई 14, 2010
गीत- हमने बहुत बहुत सोचा था
हमने बहुत बहुत सोचा था
---------------------
हमने बहुत बहुत सोचा था
कुछ भी नहीं हुआ
हार गये हम सारा जीवन
निकला एक जुआ
धारा का ऐसा प्रवाह था
पकड़न फिसल गयी
चमत्कार की सब उम्मीदें
झूठी निकल गयीं
सीढी जिसे समझते थे हम
निकला एक कुँआ
हमने बहुत बहुत सोचा था
कुछ भी नहीं हुआ
वैसे वही किया जीवन भर
जो मन में ठाना
पुरूषारथ के आगे कोई
भाग्य नहीं माना
पर नारे पड़ गये अकेले
लगने लगे दुआ
हमने बहुत बहुत सोचा था
कुछ भी नहीं हुआ
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
lajawaab...sach kaha zindagi jua hi to hai...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
जवाब देंहटाएंगहरे भाव.
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी है ...
जवाब देंहटाएंपर हार मानने से काम नहीं चलेगा, जूझते रहना है ... कोशिश करते रहना है, एक न एक दिन वो कुआँ भी सीढी बन जायेगा ...