अब तो सुबह शाम रहते हैं
जबड़े कसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये
हर अच्छे मजाक की कोशिश
खाली जाती है
हंसी नाटकों में पीछे से
डाली जाती है
कांटे कुछ दिल से दिमाग तक
गहरे धंसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये
खा डाले खुदगर्जी ने
गहरे याराने भी
'आप-आप' कहते हैं अब तो
दोस्त पुराने भी
मेहमानों से लगते रिश्ते
घर में बसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये
रविवार, अगस्त 23, 2009
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lajawaab prastuti.
जवाब देंहटाएंवाकई, बहुत साल हुए खुल कर हंसे!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
उम्दा... साधुवाद. जारी रहें.
जवाब देंहटाएं---
उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/
बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंसुंदर....
जवाब देंहटाएंhar pal hanso bhai.tax to nahi hai. narayan narayan
जवाब देंहटाएंकचोट ने वाली रचना ...उदासी के आलम मे ऐसाही महसूस होता है ..
जवाब देंहटाएंhttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
हर अच्छे मजाक की कोशिश
जवाब देंहटाएंखाली जाती है
हंसी नाटकों में पीछे से
डाली जाती है
कांटे कुछ दिल से दिमाग तक
गहरे धंसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये
बहुत सुन्दर ....गीतों का रास्ता सीधा दिल तक है..
http://drramkumarramarya.blogspot.com
बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
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