रविवार, अगस्त 23, 2009

जाने कितने साल हो गए खुल कर हँसे हुए

अब तो सुबह शाम रहते हैं
जबड़े कसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये

हर अच्छे मजाक की कोशिश
खाली जाती है
हंसी नाटकों में पीछे से
डाली जाती है
कांटे कुछ दिल से दिमाग तक
गहरे धंसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये


खा डाले खुदगर्जी ने
गहरे याराने भी
'आप-आप' कहते हैं अब तो
दोस्त पुराने भी
मेहमानों से लगते रिश्ते
घर में बसे हुये
जाने कितने साल हो गये
खुल कर हंसे हुये

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई, बहुत साल हुए खुल कर हंसे!!

    सुन्दर रचना!

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  2. उम्दा... साधुवाद. जारी रहें.
    ---

    उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/

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  3. बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।

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  4. कचोट ने वाली रचना ...उदासी के आलम मे ऐसाही महसूस होता है ..
    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://shama-baagwaanee.blogspot.com

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  5. हर अच्छे मजाक की कोशिश
    खाली जाती है
    हंसी नाटकों में पीछे से
    डाली जाती है
    कांटे कुछ दिल से दिमाग तक
    गहरे धंसे हुये
    जाने कितने साल हो गये
    खुल कर हंसे हुये
    बहुत सुन्दर ....गीतों का रास्ता सीधा दिल तक है..
    http://drramkumarramarya.blogspot.com

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  6. बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।

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