एक गज़लनुमा रचना
हमीं ने काम कुछ ऐसा चुना है
वीरेन्द्र जैन
हमीं ने काम कुछ ऐसा चुना है
उधेड़ा रात भर दिन भर बुना है
न हो संगीत सन्नाटा तो टूटे
गज़ल के नाम पर इक झुनझुना है
समझते खूब हो नज़रों की भाषा
मिरा अनुरोध फिर क्यों अनसुना है
तुम्हारे साथ बीता एक लम्हा
बकाया उम्र से लाखों गुना है
जहाँ पर झील में धोया था चेहरा
वहाँ पानी अभी तक गुनगुना है
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
शनिवार, दिसंबर 12, 2009
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हमीं ने काम कुछ ऐसा चुना है
जवाब देंहटाएंउधेड़ा रात भर दिन भर बुना है
बहुत खूब शुभकामनायें
nice
जवाब देंहटाएंबढिया गजल है।बधाई।
जवाब देंहटाएंजहाँ पर झील में धोया था चेहरा
जवाब देंहटाएंवहाँ पानी अभी तक गुनगुना है
behatareen.
वाह !
जवाब देंहटाएंसमझते खूब हो नज़रों की भाषा
मिरा अनुरोध फिर क्यों अनसुना है
वाकई गजलनुमा गजल से बेहतर हो सकता है।
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