गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

एक गज़लनुमा रचना---------------------------------- धार क्या खाक मोड़ता यारो


एक गज़लनुमा रचना
धार क्या खाक मोड़ता यारो!
वीरेन्द्र जैन
हाथ दरिया के जोड़ता यारो
धार क्या खाक मोड़ता यारो


फैंक दी आखिर मैंने चादर ही
पाँव कब तक सिकोड़ता यारो


मुझको कस्तूरी मिल गई बरना
रोज़ वन वन में दौड़ता यारो


दर असल वो तो मेरी आदत थी
मैं उसे कैसे छोड़ता यारो


मन वचन कर्म से दिगम्बर था
क्या नहाता निचोड़ता यारो


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629



3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लिखा ...
    फैंक दी आखिर मैंने चादर ही
    पाँव कब तक सिकोड़ता यारो

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  2. फैंक दी आखिर मैंने चादर ही
    पाँव कब तक सिकोड़ता यारो

    Kya khub kahi hai...Bait-ul-Ghazal!

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  3. हाथ दरिया के जोड़ता यारो
    धार क्या खाक मोड़ता यारो



    फैंक दी आखिर मैंने चादर ही
    पाँव कब तक सिकोड़ता यारो

    रचना में खुद्दारी है
    अंदाज प्यारा और असरदार है

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