
एक गजलनुमा रचना सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है
वीरेन्द्र जैन
आम अमरूद है ना इमली है
बाग में फूल है न तितली है
अब वहां आप हैं ना हलचल है
सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है
घूम फिर जिक्र आ ही जाता है
जब भी बातों में बात निकली है
हर किसी ने सम्हाल कर रक्खी
हर किसी की जुबान फिसली है
पीर से कोई बच नहीं पाया
उसने उगली है हमने निगली है
वीरेन्द्र जैन
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