एक गज़लनुमा रचना
वीरेन्द्र जैन
सरे मैदान अपनों से लड़ा हूं
महाभारत के अर्जुन से बड़ा हूं
मैं जिन हालात में जिन्दा खड़ा हूं
निगाहे मौत में चिकना घड़ा हूं
कभी सिर आंख पर जिनने बिठाया
उन्हें लगता है उनके सिर पड़ा हूं
मैं खूं के घूंट पी कर रह रहा हूं
नदी के पास भी प्यासा पड़ा हूं
न पूछो हाल ताजा हैसियत का
उमड़ती भीड़ का इक आंकड़ा हूं
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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न पूछो हाल ताजा हैसियत का
जवाब देंहटाएंउमड़ती भीड़ का इक आंकड़ा हूं
क्या बात है ... आज इंसान बस आंकड़ा ही तो बनकर रह गया है ...
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
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