मंगलवार, जुलाई 27, 2010
एक गज़लनुमा रचना - सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है
एक गजलनुमा रचना सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है
वीरेन्द्र जैन
आम अमरूद है ना इमली है
बाग में फूल है न तितली है
अब वहां आप हैं ना हलचल है
सिर्फ यादों की बर्फ पिघली है
घूम फिर जिक्र आ ही जाता है
जब भी बातों में बात निकली है
हर किसी ने सम्हाल कर रक्खी
हर किसी की जुबान फिसली है
पीर से कोई बच नहीं पाया
उसने उगली है हमने निगली है
वीरेन्द्र जैन
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हर किसी ने सम्हाल कर रक्खी
जवाब देंहटाएंहर किसी की जुबान फिसली है
वाह, क्या बात है ! बहुत सुन्दर !
पीर से कोई बच नहीं पाया
जवाब देंहटाएंउसने उगली है हमने निगली है
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
bahut hi pyari rachna..
जवाब देंहटाएंA Silent Silence : Kuch Maang Ke To Dekh..(कुछ माँग के तो देख..)
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